लोकनायक जय प्रकाश नारायण

आपात काल (जून २५, १९७५ – मार्च २१, १९७७) हटाए जाने की ४०वीं वर्षगाँठ पर विशेष

मन में बड़ी ललक थी।  साल भर बाद अपनी पत्नी और बिटिया के साथ पुनः अपनी जन्म-भूमि पटना जा रहा था।   सोलह घंटे की अंतर्राष्ट्रीय विमान यात्रा के बाद दिल्ली से पटना की पटना यात्रा को ले कर हम सबमें बहुत उत्साह था।  पर थकान अपना असर दिखा रही थी।  विमान की सीट से नीचे झाँकते-झाँकते न जाने कब झपकी आ गयी। “यात्री-गण कृपया ध्यान दें. कुछ ही क्षणों में हमारा विमान पटना के जय प्रकाश नारायण अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर उतरने वाला है. आप अपनी सुरक्षा पेटी …” की घोषणा के साथ ही मेरी झपकी टूटी। विमान की खिड़की के बाहर देखा तो नीचे गंगा नदी का चाँदी सा पानी और महात्मा गांधी सेतु जनवरी की खुली धुप में चमक रहे थे। पलक झपकते ही हमारा विमान हवाई अड्डे पर खड़ा था। उतरने के लिए दरवाज़े से निकला तो बचपन की एक महत्वपूर्ण घटना मेरे जेहन में घूम गयी।

मैं कोई नौ या दस वर्ष का रहा हूँगा उस वक्त। लोक नायक श्री जय प्रकाश नारायण अरसे के बाद पटना आने वाले थे। पूरे शहर में उत्साह का माहौल था। जत्था-का-जत्था हवाई अड्डे की ओर चला जा रहा था। जिसे देखो उसके मुंह पर जे.पी. की ही चर्चा। फसाद की आशंका की वजह से मेरे घर से निकलने पर पाबंदी लगा दी गई थी। माँ और पिता जी काम पर जा चुके थे। मैं नाना और नानी को धता बता कर हवाई अड्डे की ओर निकल पड़ा। हमारे घर से हवाई अड्डा कोई दो-ढाई किलोमीटर की दूरी पर ही था। घर से निकल कर चितकोहरा रेलवे गुमटी तक पहुँचते ही भीड़ की रेलम-पेल शुरू हो गयी। जब हवाई अड्डे पहुंचा तब तक काफी भीड़ जमा हो चुकी थी। लोग बाग़ जोर-जोर से नारे लगा रहे थे। बूढ़े, बच्चे, जवान, और औरतें सभी एक दूसरे को किहुनियों से धक्के देते आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे थे। सुरक्षा-कर्मियों और पुलिसिया अफसरों के माथों पर पसीनों की बूँदें चमकने लगी थीं। ज्यों-ज्यों समय बीतता जाता, भीड़ और उग्र होती जाती।तभी आसमान में हवाई जहाज की गूँज सुनाई देने लगी और पलक झपकते ही सफ़ेद बादलों के बीच से निकल कर इंडीयन एयरलाइंस का एक जहाज हवाई अड्डे के ऊपर मंडराने लगा। भीड़ ने बेसब्र हो कर एक बार जोर से नारा लगाया। सुरक्षा कर्मियों की मुट्ठियाँ भिंच गईं और उनके हथियारों पर उनकी पकड़ और मज़बूत हो गई। भीड़ का सब्र अब और उबलने लगा था। भीड़ के लगातार धक्कों से पुलिसिया घेरों पर तनाव बढ़ने लगा था। अधिकारी-गण और बंदोवस्त बुलाने के लिए रेडियो पर सन्देश भेजने लगे। तभी हवाई जहाज़ रनवे उतरा और टच डाउन के बाद हवाई अड्डे की ओर बढ़ने लगा। भीड़ ने एक बार फिर से गर्जना की तो सारा आस-पास दहल उठा। सुरक्षा अधिकारियों में भी खलबली मच गयी। सभी अपनी-अपनी जगहों पर चौकस और तैनात हो गए। जहाज़ सामने आकर रुका और कुछेक बेसब्र लम्हों के बाद उसका दरवाज़ा खुला। एक कमज़ोर और बीमार सी सख्शियत झकाझक सफ़ेद कपड़ों में दरवाज़े पर दिखी और भीड़ की सब्र का बाँध टूट पड़ा। साथ-ही-साथ टूटे सुरक्षा के घेरे। खुशियों के आंसू और उत्साह के साथ सभी जहाज़ की ओर दौड़ पड़े। ‘लोक नायक अमर रहें’, ‘जे.पी. जिंदाबाद’, आदि नारों से आसमान गूँज उठा।

अरसा बाद आज लोगों को अपने नायक को देखने का मौक़ा मिला था। जिसके कहने पर लोगों ने पुलिस की लाठियां खाईं, जेल गए, अनशन किया, और सरकार के पुतले फूंके, वही जन-नायक आज उनके सामने खड़ा था। जिसके कहने पर नक्सलियों एवं चम्बल के कुख्यात डकैतों ने अपने हथियार डाल दिए थे, वही लोक नायक अरसा बाद आज अपने घर लौटा है। जिस जन-नायक को महीनों सलाखों के पीछे रखा गया और प्रताड़नाएँ दी गयीं, पर उसी जन-नायक की शक्ति के आगे अपने ही देश की दमनकारी सरकार को घुटने टेकने पड़े, वही जन-नायक हिंदुस्तान का लाड़ला जे.पी. आज अपने जीवन के बचे-खुचे दिन शांति से काटने अपने कदम कुआँ आवास पर वापस आ रहा था। हवाई अड्डे से कदमकुआं तक का रास्ता लोगों से अटा पड़ा था। सडकों के दोनों ओर कतारें बांधे लोग अपने जन-नेता की एक झलक पाने को हाथ बाँधे खड़े थे। हवाई जहाज़ से निकल कर जे.पी. को खुली जीप में बिठाया गया और लोगों का जत्था धीरे-धीरे सरकारी बंदोवस्त के पीछे हो चला। लोग चलती जीप के ऊपर चावल और फूल और मालाएं फ़ेंक रहे थे। जे.पी. लोगों का अभिनन्दन स्वीकार करते हुए कभी-कभी हाथ हिला देते तो भीड़ नारों से आसमान पाट देती … “संपूर्ण क्रांति अब नारा है, भावी इतिहास हमारा है।”

लोगों के आंसू आज थामने का नाम नहीं ले रहे थे। अपने ही देश में बरसों की जेल और अपनी ही सरकार से भीषण शारिरिक प्रताड़ना सहने के बाद लोक नायक आज आज़ाद नागरिक के रूप में अपने घर वापस आ रहे थे। किसने सोचा था कि सन ‘४७ में अंग्रेजों के भारत छोड़ने के महज २८ साल बाद ही एक बार फिर से स्वतंत्रता संग्राम छेड़ना पडेगा? किसने सोचा था कि अपने देश में अपनी ही सरकार की दमन का सामना करना पडेगा? किसने सोचा था कि सदियों की लड़ाई, और असंख्य बलिदानों के बाद मिली आज़ादी एक बार फिर से छिन जायेगी? किसने सोचा था कि हम भारतीय अपने ही देश में, अपनी ही भाषा बोलने वाली, अपने ही द्वारा चुनी हुई, अपने ही रंग की सरकार के हाथों गुलाम हो जायेंगे?

हवाई जहाज़ के दरवाज़े से निकल कर जब मैंने ताज़ी हवा में एक बार फिर से सांस ली तो मुझे अपनी आज़ादी का अहसास हुआ। मैं इत्मीनान से बैगेज क्लेम की तरफ चल पड़ा। कोई डर नहीं, कोई भय नहीं, कोई मीसा नहीं, कोई आपात काल नहीं। मुझे मालूम था कि जब जे.पी. उस दिन लौट कर पटना आये थे, आपात काल के डरावने और घिनौने सपने को वो बहीं अपने सीलन भरे जेल के कमरों में दफ्न कर आये थे.

“सिंहासन खाली करो कि जनता आती है” – रामधारी सिंह ‘दिनकर’