प्रस्तावना :
‘यत्र नारस्य पूज्यन्ते,रमन्ते तत्र देवता‘ अर्थात जहां नारी का सम्मान होता है, वहां देवता निवास करते हैं | यह वाक्य जिस देश के शास्त्रों में लिखा हो, उस देश के विषय में जब लोग यह कहने लगें कि इस देश में शुरू से नारियों पर अत्याचार होता आया है तथा भारतीय और सनातनी संस्कृति शुरू से पित्रसत्तामक तथा महिला विरोधी रही है, यह तथ्य गले नहीं उतरते | मगर जब पुस्तके देखी जाती हैं जिन्हें मेकाले के बाद से अंग्रेजों ने पढाया तथा उन्ही के आधार पर सन्दर्भ लेकर आज के बुद्धिजीवी वर्ग ने भी वही बाते लिखना शुरू करी, तो उन पुस्तकों में अक्सर लोग यह कहते पाए जाते हैं कि भारत में महिलाओं पर बहुत अत्याचार होता है और इसकी जड़ पूंजीवाद या पश्चिमी सभ्यता नहीं बल्कि स्वयं भारत और वैदिक साहित्य है तथा भारत शुरू से ही महिला विरोधी रहा है और इसी कारण से यहाँ आज भी अत्याचार हो रहे हैं | यही नहीं यह लोग यहाँ तक कह देते हैं कि जब तक भारत की प्राचीन संस्कृति, सभ्यता तथा धर्म का नाश नहीं होगा तब तक महिलाओं पर अत्याचार होता रहेगा क्योंकि भारत की प्राचीन संस्कृति ही महिलाओं पर अत्याचार का आधार है |
यह सब तो थे अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था में पढ़े हुए लोगों के तथ्य पर इसके उलट जब भारत के आम परिवारों में देखा जाता है तथा दुनिया भर के साहित्य में भारतीय संस्कृति , सभ्यता तथा धर्म के विषय में पढ़ा जाता है तो कोई और बात ही सामने आती है तथा भारत का इतिहास बिलकुल भी महिला विरोधी नजर नहीं आता | अतः मैंने इस विषय पर अध्ययन करने का निर्णय किया तथा प्राचीन काल से महिलाओं की स्थिति का आंकलन करने का प्रयास किया | इसी अध्ययन को नीचे इस शोधपत्र के रूप में प्रस्तुत किया गया है |
प्राचीन भारत में महिलाओं की स्थिति :
भारत दुनिया का सबसे प्राचीन देश है तथा भारत का इतिहास भी दुनिया में सबसे प्राचीन इतिहास है | वैसे तो सबसे पहले शंकर के साथ पार्वती, विष्णु के साथ लक्ष्मी तथा ब्रह्मा के साथ सरस्वती आदि देवताओं के वर्णन भारतीय साहित्य में हैं जिनमे पत्नियाँ पति के बराबर स्थान पर हैं | मगर इनकी बात करने से लोग कहेगे के यह सब तो मिथ्या है | अतः वैदिक काल से ही महिलाओं की स्थिति का अध्ययन करना उचित होगा | सबसे पहले बात करते हैं ऋग वेद की जो सबसे प्राचीन है | ऋगवेद के अन्दर लोपमुद्रा नामक महिला का वर्णन आता है | यह विदर्भ की राजकुमारी थीं |[i]लोपमुद्रा को उनके पिता ने बहुत पढाया, लिखाया तथा विद्वान बनाया एवं उन्हें सभी शास्त्रों का ज्ञान दिया | इन्होने अपनी मर्जी से ऋषि अगस्त्य से विवाह किया | यही नहीं इन्होने बाद में ऋषि अगस्त्य को गृहस्थ जीवन का मोल भी समझाया | क्या ऐसी महिला जो पिता तथा पति दोनों के घर में अपनी इच्छानुसार रही तथा पढ़ी लिखी एवं विवाह भी अपनी मर्जी से किया दबी कुचली कहलाई जायेगी, यह सोचने योग्य प्रश्न है ? पर पश्चिमी नव नारीवादी आन्दोलनों से निकले लोग यही कहते हैं कि भारत में महिलाओ को शुरू से दबाया गया है |
दूसरा उदाहरण ऋगवेद से ही मैत्रेयी का आता है | इन्होने भी शास्त्रों का अद्भुत ज्ञान अर्जित किया एवं याग्यवलक्य ऋषि से इनकी शादी हुई | जब ऋषि एक दिन सब कुछ त्याग कर अपना सारा सामान इन्हें देकर वन में तपस्या को जाने लगे , तब मैत्रेयी ने उनसे कहा के – जरुर वन में तपस्या में ऐसा कुछ है जो इन सभी वस्तुओं से अधिक कीमती है अतः मुझे यह सब नहीं बल्कि वही चीज चाहिए जो आप वन में प्राप्त करने जा रहे हैं | यह सुनकर याज्ञवल्क्य ऋषि को बहुत ख़ुशी हुई तथा फिर दोनों पति पत्नी ने साथ में जाकर तपस्या कर ज्ञान प्राप्त किया |
इसी तरह ऋगवेद में गार्गी का वर्णन आता है जिन्होंने ना सिर्फ शास्त्रों, संस्कृत एवं अन्य ज्ञान प्राप्त किये बल्कि यह शास्त्रार्थ की कला में भी पूरी तरह निपुण थीं | इन्होने जनक के दरबार में कई पंडितो को शास्त्रार्थ में पराजित किया तथा इन्होने ऋषि याज्ञवल्क्य से भी शास्त्रार्थ किया था | इन्होनें भी वेद में कई ऋचाये रची हैं |
इसी तरह घोषा आदि महिलाओं का वर्णन वेदों में है | जिससे यह ज्ञात होता है कि प्राचीन भारत में महिलाओं को बराबरी का दर्जा दिया जाता था तथा उनके पढने लिखने, बाहर जाने या विवाह करने पर कोई रोक टोक नहीं थी |
प्राचीन पुस्तकों में महिलाओं की स्थिति :
रामायण में सर्वप्रथम श्री राम की दूसरी माता कैकयी का वर्णन आता है | यह राजा दशरथ की पत्नी थीं तथा राक्षसों के साथ युद्ध में यह राजा दशरथ के साथ राक्षसों से लड़ी थी | यही नहीं राजा दशरथ के रथ का पहिया टूट जाने पर इन्होने अपने हाथ की ऊँगली काट कर उसमे लगा दी थी , जिससे राजा दशरथ युद्ध जीत सके थे | इसी समय राजा दशरथ ने इन्हें एक वरदान मांगने को कहा था जो उन्होंने बाद में मंथरा के भड़काने के कारण श्री राम को वन भेजने के रूप में माँगा |[ii] क्या कैकई जो युद्ध लडती हैं , पति तथा राजा को अपने निर्णय के आगे झुका लेती हैं , युवराज को वन भेज देती हैं , वो कही से भी कमजोर नारी का प्रतीक नजर आती हैं? यह एक सोचने योग्य बात है | मगर बेचारे अंग्रेजी साहित्यकार और उनके नकलची भारतीय नारीवादी वामपंथी इन तथ्यों को क्यों देखेंगे |
इसी तरह महाभारत में एक द्रोपदी के अपमान पर सौ कौरवो का नाश कर दिया जाता है | कुंती तथा गांधारी भी जहाँ समानता से पति के सम्मुख बैठती एवं बातें करती हैं | जहाँ सुभद्रा और रुक्मणि अपने वर स्वयं चुनती हैं |[iii] उन ग्रंथों में यदि किसी को नारी पर अत्याचार दिखाई देता है , तो यह उसका तथ्यों से आँखे मूंदना नहीं तो और क्या कहा जाएगा |
इसी तरह माता पार्वती के हठ के कारण भगवान् शंकर को गणेश जी को जीवित करना पढता है एवं एक कथा के अनुसार माता काली को शांत करने के लिए स्वयं उनके पति भगवान् शिव को उनके चरणों के नीचे लेटना पढता है | जिससे उनका गुस्सा शांत होता है | यही नहीं हर देवता के नाम के पहले स्त्री का नाम आता है जैसे राधा-कृष्ण, सीता-राम, उमा-शंकर, जानकी-वल्लभ, लक्ष्मी-नारायण आदि क्या यह सब भारत में महिलाओं की बुरी स्थिति की ओर इशारा करते हैं ?
अन्य ऐतिहासिक तथ्य :
चन्द्रगुप्त मौर्य ने धनानंद की बेटी से प्रेम विवाह किया था जिसमे दोनों का ही समान रिश्ता था | भारत के वेदों में ८ प्रकार के विवाहों का वर्णन है , जिनमे प्रेम विवाह से लेकर स्वयंवर तक को बराबर स्थान दिया गया है , फिर भारत की संस्कृति महिला विरोधी कैसे है | शिवाजी के दरबार में एकबार कोई मुग़ल राजा की स्त्री को पकड़ कर ले आया तब शिवाजी ने कहा – यह स्त्री हमारे लिए माता सामान है तथा इसे ससम्मान वापस भेज दिया जाए | यही नहीं शिवाजी को महान शासक बनाने के पीछे उनकी माता जीजाबाई का बहुत बढ़ा हाथ था | शिवाजी से लेकर झांसी की रानी तक कभी महिलाएं इस देश में दबायी नहीं गयीं | फिर यह बात कि भारत की संस्कृति महिला विरोधी थी, एकदम गलत प्रतीत होती है |
इन सभी तथ्यों से यह साबित होता है के प्राचीन भारत में, भारत की संस्कृति में या भारत के हिन्दु धर्म में कभी महिलाओं को दबाने या शोषण की बात नहीं कही गयी थी | यह सब तब शुरू हुआ जब भारत पर विदेशी मुग़ल आक्रमण शुरू हुए तथा उस समय जब महिलाओं को उठा कर उनसे बलात्कार एवं जबरन शादियाँ शुरू हुई | उस समय कई राजपूत महिलाओं ने पति की मृत्यु के तुरंत बाद जोहर करके स्वयं को भी जला लिया तथा कई जगहों पर बलात्कार आदि से बचाने के लिए बाल विवाह शुरू कर दिए गए |
इन्ही जोहर तथा अपनी इज्जत बचाने को लेकर जली हुई महिलाओं के विषय में अंग्रेज मिशनरियों ने जानबूझ कर सती प्रथा लिखना शुरू कर दिया | जबकि असली में सती अनसुइया, सावित्री जली नहीं थीं बल्कि अपने पतियों को मृत्य से बचा कर ले आई थीं | अंग्रेज मिशनरियों को बंगाल में धर्म परिवर्तन करवाना था इसीलिए उन्होंने हिन्दू धर्म की बुराई तथा यह झूठ लिखने और फैलाने शुरू किये | सबसे पहले बंगाल के ही सती औरतों के आंकड़े दुनिया के सामने रखे गए जहाँ अंग्रेजो का राज था एवं उन्ही के कोल्कता के कॉलेज से यह शोधकर्ताओ ने लोगों तक फैलाए | यदि उस समय की अंग्रेजी पार्लियामेंट की डिबेट के आंकड़े देखे जाए तो मिशनरी एक दिन अलग आंकड़े देते थे तथा दुसरे दिन दुसरे आंकड़े | इससे साफ़ साबित होता है कि सतियों के जलने के आंकड़े झूठे थे तथा हिन्दू धर्म को बदनाम करने के लिए गड़े गए थे | इस विषय में भारत की दो महिला लेखकों मधु किश्वर एवं मीनाक्षी जैन[iv] ने अपनी पुस्तकों में लिखा है |
इसी तरह अंग्रेजो ने दहेज़ हत्या को दहेज़ प्रथा का नाम दिया | जबकि असलियत में भारत में स्त्री धन नाम की एक प्रथा रही थी जिसमे पिता की संपत्ति पर जितना अधिकार पुरुष का होता है उतना ही महिला का भी ऐसी मान्यता थी | इसी आधार पर पिता अपनी पुत्री के हिस्से का धन उसकी शादी के समय अपनी पुत्री को दे दिया करता था तथा बाकी बचा धन पुत्र के लिए रखता था | इसका दुरूपयोग तब होने लगा जब अंग्रेजों ने लूट कर भारत के लोगों को कंगाल बना दिया तथा उनकी उलटी शिक्षा पद्दति में पढ़कर लोग लालची तथा पैसे के लोभी हो गए | पहले तो वस्तु विनयम की व्यवस्था थी अतः पैसे का लोभ ही नहीं था मगर बाद में अंग्रेजो ने पैसे का लालच फैलाया तथा गरीबी के कारण लोगों ने शादी में पैसा मांगना शुरू कर दिया और इस कारण कई महिलाओं की हत्याएं हुई | मगर इसका भारत की संस्कृति या धर्म से कोई लेना देना नहीं था और जैसे जैसे भारत पढता लिखता जा रहा है यह दहेज़ हत्याएं भी ख़त्म होती जा रही हैं |
उपसंहार :
इन तथ्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि भारतीय संस्कृति कभी भी महिला विरोधी नहीं रहा तथा वैदिक संस्कृति या धार्मिक साहित्य में कहीं भी ऐसा नहीं सिखाया गया कि महिलाओं का अपमान करना चाहिए या उन्हें दबा कर रखना चाहिए | बल्कि इसके उलट अंग्रेजो ने विच हंटिंग के नाम पर यूरोप में कई महिलाओं की जान ली थी एवं कई सालों तक उनके देशों में महिलाओं के पास वोटिंग तथा बैंक में अकाउंट खुलवाने के अधिकार भी नहीं थे | आज भी मानवाधिकार की बात करने वाले सबसे बड़े देश अमेरिका में सबसे ज्यादा बलात्कार होते हैं तथा अभी तक कोई महिला राष्ट्रपति उनके देश में नहीं बनी है | जबकि भारत में महिला मुख्यमंत्री, गवर्नर, विदेश मंत्री, विपक्ष की अध्यक्ष ,राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री आदि सभी पदों पर आसीन हैं या पहले हो चुकी हैं | अतः अंत में यही कहा जा सकता है कि पश्चिमी बुद्धिजीवी तथा भारतीय गुलाम मानसिकता वाले बुद्धिजीवियों के यह तर्क जिनमें वह भारत को महिला विरोधी देश बताते हैं बिलकुल गलत हैं तथा इन तथाकथित बुद्धिजीवियों की शिक्षा व्यवस्था प्रणाली में स्वदेशी सुधार की अत्यंत आवश्यकता है |
References-
[i] ऋगवेद
[ii] रामायण (वाल्मीकि)
[iii] महाभारत
[iv] सती (मीनाक्षी जैन)
Image credit: https://images.designtrends.com/wp-content/uploads/2016/04/18071235/Rajasthani-Woman-Painting-by-Vidyut-Singhal.jpg
Disclaimer: The facts and opinions expressed within this article are the personal opinions of the author. IndiaFacts does not assume any responsibility or liability for the accuracy, completeness, suitability, or validity of any information in this article..
Shubham Verma is a Social worker, Researcher and writer working with VIF, New Delhi as a Development Associate. His research focus is on Social sciences, Indian History, Indian culture, Internal security and Rural development. He is the founder of “Swadeshi Yuwa Swabhiman” working in grassroot areas of Madhya Pradesh.